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मंदिर का इतिहास

मंदिर का निर्माण प्रकृति के मूलभूत पंच तत्व वायु पृथ्वी जल आकाश अग्नि के समन्वय से होना चाहिए जिससे पूर्ण ऊर्जा का उद्गम हो सके | एक ऐसा ऊर्जामय वातावरण जिसमें कोई भी भय, द्वेष, हिंसा ना हो | 1988 में बरेली के एक व्यापारी जगमोहन सिंह के मन में मंदिर बनाने का विचार आया | वे श्री पशुपतिनाथ मंदिर के उपासक हैं प्रतिवर्ष 1 सप्ताह का प्रवास काठमांडू के मंदिर कैंपस में बागमती के किनारे ढोके मय होता था वहीं पर उत्तरकाशी के राज्य ज्योतिषी श्री लक्ष्मी नारायण शास्त्री जी पूजन व महाभिषेक की व्यवस्था कराते थे तभी मन में चेतना उत्पन्न हुई कि बरेली में पशुपति विहार कॉलोनी में पगोडा पद्धति से श्री पशुपतिनाथ मंदिर का निर्माण कराया जाए |
परंतु संकल्प समय गति में फंस गया आर्थिक परिस्थिति और व्यापारिक तनाव में संकल्प पूर्ण करना असंभव लगने लगा तभी 2001 में हरिद्वार में पुराने घनिष्ठ मित्र दौलत राम जीवन राम मूर्ति के पुत्र अरुण अग्रवाल जी ने संकल्प याद कराया और साहस दिया उस समय उनके पास ₹500 थे अरुण जी ने कहा मानसिक संकल्प ले कार्य शुरू करो सारे शुरू होते ही सभी बाधाएं स्वता ही नष्ट हो गए धन की कमी भी महसूस नहीं हुई 3 मार्च 2002 में शंकराचार्य जी के निर्देशानुसार बनारस के आचार्यों द्वारा मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा संपन्न हुई |
ज्योतिपीठ बद्रिकापीठाधीश्वर जगद्गुरु श्री शंकराचार्य श्री वासुदेवानंद सरस्वती जी महाराज के निर्देशानुसार बनारस के आचार्यो द्वारा मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा की गई | स्वयं श्री शंकराचार्य जी द्वारा मंदिर का नामकरण श्री जगमोहनेश्वर नाथ जी हुआ | संकल्प 108 शिव मंदिर का था, उसके स्थान पर 108 शिवलिंगों को मंदिर में प्रतिष्ठपित की गई | मंदिर परिसर में वैदिक अनुष्ठानों के लिए 16 स्थंभी पदमकुंड युक्त यज्ञशाला है | मंदिर परिसर में अतिथिगृह और भोजनालय है जिस में समय समय पर भंडारो का आयोजन किया जाता है| मंदिर में शनिदेव और भैरवबाबा की भी स्थापना है | कैलाश पर्वत मानसरोवर से लाए हुए शिवलिंग का स्थान कैलाश पर्वत पर है | कैलाश पर्वत पर 1101 नर्मदेश्वर शिवलिंग की स्थापना है | मंदिर को प्रकृति ने घेरा हुआ है जो कि बहुत से पशु पक्षियों का घर है जैसे मछली, बतख कछुआ, सांप, लंगूर और अन्य पक्षी | हर साल शिवरात्रि के पवन अवसर पर रुद्रमहायज्ञ होता है एवम भंडारे का आयोजन किया जाता है | मंदिर परिसर लगभाग 4000 वर्ग मीटर में फैला हुआ है जिसमें यज्ञशाला एवम आश्रम सम्मिलित है |

।। ॐ नमः शिवाय ||

हमारा उद्देश्य

हमारा उद्देश्य सनातन धर्म का प्रचार एवं प्रसार करना है ,प्रकृति एवं ईश्वरवाद का समन्वय करना है |

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