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।। श्री पशुपति नाथाय नमः ।।

हम हिंदू भगवान शिव में पूर्ण विश्वास रखते हैं

शिव अनादि तथा सृष्टि प्रक्रिया के आदि स्रोत हैं और यह काल महाकाल ही ज्योतिषशास्त्र के आधार हैं। शिव का अर्थ यद्यपि कल्याणकारी माना गया है, लेकिन वे हमेशा लय एवं प्रलय दोनों को अपने अधीन किए हुए हैं। रावण, शनि, कश्यप ऋषि आदि इनके भक्त हुए है। शिव सभी को समान दृष्टि से देखते है इसलिये उन्हें महादेव कहा जाता है।

शिव का धनुष पिनाक, चक्र भवरेंदु और सुदर्शन, अस्त्र पाशुपतास्त्र और शस्त्र त्रिशूल है। उक्त सभी का उन्होंने ही निर्माण किया था।

शिव के गणों में भैरव, वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, नंदी, श्रृंगी, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, जय और विजय प्रमुख हैं। इसके अलावा, पिशाच, दैत्य और नाग-नागिन, पशुओं को भी शिव का गण माना जाता है।

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।। श्री पशुपति नाथाय नमः ।।

यज्ञ अनुष्ठान

।। ॐ नमः शिवाय ||

यज्ञ के महत्व

यज्ञ मानव जीवन को सफल बनाने के लिए एक आधारशिला है। इसके कुछ भाग विशुद्ध आध्यात्मिक हैं। जहां यज्ञ होता है, वहां संपूर्ण वातावरण, पवित्र और देवमय बन जाता है। यज्ञवेदी में 'स्वाहा' कहकर देवताओं को भोजन परोसने से मनुष्य को दुख-दारिद्रय और कष्टों से छुटकारा मिलता है।

यज्ञ एक विशिष्ट वैज्ञानिक और आध्यात्मिक प्रक्रिया है, जिसके द्वारा मनुष्य अपने जीवन को सफल बना सकता है। श्रीमद्भागवत् गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने यज्ञ करने वालों को परमगति की प्राप्ति की बात की है। यज्ञ एक अत्यंत ही प्राचीन पद्धति है, जिसे देश के सिद्ध-साधक संतों और ऋषि-मुनियों ने समय-समय पर लोक कल्याण के लिए करवाया। यज्ञ में मुख्यत: अग्निदेव की पूजा की जाती है।

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।। श्री पशुपति नाथाय नमः ।।

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हमारा संदेश

शिव अनादि तथा सृष्टि प्रक्रिया के आदि स्रोत हैं और यह काल महाकाल ही ज्योतिषशास्त्र के आधार हैं। शिव का अर्थ यद्यपि कल्याणकारी माना गया है, लेकिन वे हमेशा लय एवं प्रलय दोनों को अपने अधीन किए हुए हैं। रावण, शनि, कश्यप ऋषि आदि इनके भक्त हुए है। शिव सभी को समान दृष्टि से देखते है इसलिये उन्हें महादेव कहा जाता है।

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हमारा उद्देश्य सनातन धर्म का प्रचार सेव प्रसार करना है, प्रकृत एवं ईश्वर बाद को संगत्व करना है |

श्री जगमोहनेश्वरनाथ

मूर्ती पूजन एक साधन है ईश्वर में मिलने का प्रथम मार्ग है, मंदिर का वातवरन हृदय को प्रफुल्लित करता है निरस्तता को खत्म करता है। प्रत्येक व्यक्ति को स्वयं में ईश्वर का अनुभव कराता है |

जगमोहन सिंह

कोई भी स्थान स्वयं पूज्य नहीं होता जब उस स्थान पर वैदिक पूजन कार्य कलाप होते हैं तो साकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न होती है वह स्वयं आपका दर्शन करती है एवम स्वयं कार्य करने को प्रेरित करती है |

शुभ्रा गंगवार